+21 Best of Ashfaqulla Khan Quotes in Hindi ! अशफाक उल्ला खां के क्रांतिकारी विचार 

Ashfaqulla Khan Quotes in Hindi -: इस पोस्ट के माध्यम से हम आपके लिए अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के क्रांतिकारी विचारों का संग्रह लेकर आए हैं। शहीद अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ एक अमर बलिदानी क्रांतिकारी थे, और बहुत उदार विचार वाले इंसान थे। साथ ही वह एक कवि भी थे और हसरत के नाम से लिखते थे, राम प्रसाद बिस्मिल भी उनके ही गाँव उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के थे और दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती थी, बिस्मिल उनको एक सच्चा मुसलमान और स्वदेश भक्त मानते थे।

अशफाक उल्ला खान की शायरी

मैं अंग्रेजों के राज्य से हिन्दू राज्य ज्यादा पसंद करूँगा।

अशफाक उल्ला खां के क्रांतिकारी विचार 

हम चाहते तो किसी गवाह, किसी खुफिया पुलिस के अधिकारी या किसी अन्य ऐसे आदमी को मार सकते थे किन्तु यह हमारा उद्देश्य नहीं था, हम तो कन्हाई लाल दत्त, खुदी राम बोस, गोपी मोहन साहा की स्मृति में फांसी पर चढ़ जाना चाहते थे।

मेरे हाथ इंसानी खून से कभी नहीं रंगे,
मेरे ऊपर जो इल्जाम लगाया गया,
वह गलत है
खुदा के यहाँ मेरे इन्साफ होगा

अशफाक उल्ला खां के क्रांतिकारी विचार 

Ashfaqulla Khan Quotes in Hindi

भारतीय भाइयो, आप कोई भी हों, चाहे किसी भी धर्म या सम्प्रदाय के अनुयायी हों,
परन्तु आप देशहित में एक होकर योग दीजिये, आप लोग व्यर्थ में लड़- झगड़ रहे हो।
सब धर्म एक हैं, रास्ते चाहे अलग- लग हों, परन्तु लक्ष्य सबका एक ही है
फिर यह सोचकर कि सात करोड़ मुसलमान भारतवासियों में मैं सबसे पहला मुसलमान हूँ जो
भारत माता की स्वतंत्रता के लिए फांसी पर चढ़ रहा हूँ,
मैं मन ही मन अभिमान का अनुभव कर रहा हूँ

हमें नाम पैदा करना तो है नहीं, यदि नाम पैदा करना होता तो क्रांतिकारी वाला काम छोड़ देता और लीडरी न करता.

अशफाक उल्ला खां के क्रांतिकारी विचार 

जजों ने हमें निर्दयी, बर्बर, मानव कलंक आदि विशेषणों से याद किया है,
किन्तु हम पूछते हैं कि क्या इन जजों ने जालियां वाला बाग़ में डायर को गोली चलाते देखा या सुना नहीं?
क्या उसने निरस्त्र भारतीयों –स्त्री, पुरुष, बाल, वृद्ध, सबपर गोलियाँ नहीं चलाई थी?
कितने जजों ने उसे इस तरह के विशेषणों से संबोधित किया?
फिर क्या यह सब हमारा मजाक उड़ाने के लिए किया जा रहा है?

Ashfaqulla Khan Quotes

तुम समझते होगे कि काल- कोठरियों ने मुझे दुबला कर दिया है, मगर बात ऐसी नहीं है. मैं आजकल बहुत कम खाता हूँ और इबादत में ज्यादा समय गुजारता हूँ. कम खाने से इबादत में खूब मन लगता है.

अशफाक उल्ला खां के क्रांतिकारी विचार 

जिसमें उन्होंने फैजाबाद जेल की काल-कोठरी में फाँसी से पूर्व अपनी जिन्दगी की आखिरी रात गुजारते हुए अशफ़ाक़ के दिलो-दिमाग में उठ रहे जज्वातों के तूफान को हिन्दी शब्दों का खूबसूरत जामा पहनाया था।

अशफाक उल्ला खां के आखिरी शब्द

जी करता है मैं भी कह दूँ, पर मजहब से बँध जाता हूँ; मैं मुसलमान हूँ पुनर्जन्म की बात नहीं कह पाता हूँ। हाँ, खुदा अगर मिल गया कहीं, अपनी झोली फैला दूँगा; औ’ जन्नत के बदले उससे, यक नया जन्म ही माँगूँगा।।”

अशफाक उल्ला खां के आखिरी शब्द

हम भारतमाता के रंगमंच पर अपना पार्ट अदा कर चुके है
हमने गलत अथवा सही जो कुछ भी किया,
वह स्वतंत्रता प्राप्ति की भावना से किया
कुछ लोग हमारे इस काम की प्रशंसा भी करेंगे और कुछ लोग निंदा
किन्तु हमारे साहस और वीरता की प्रशंसा हमारे दुश्मनों तक को करनी पड़ेगी

Ashfaqulla Khan Thaughts

एक पुलिस अधिकारी पं० विद्यार्णव शर्मा की पुस्तक युग के देवता में बिस्मिल और अशफ़ाक़ दोनों के विचारों को प्रस्तुत किया गया है। इस पुस्तक में अशफ़ाक़ ने अपने अंतिम विचार रखते हुए लिखा कि “गवर्नमेण्ट के खुफिया एजेण्ट मजहबी बुनियाद पर प्रोपेगण्डा फैला रहे हैं।

अशफ़ाक़ के क्रांतिकारी विचार

अशफ़ाक़ ने जेल में रहते हुए अपनी डायरी लिखी जिसमें हिंदुस्तानी आवाम के लिए संदेश लिखे। अशफ़ाक़ के विचार उस समय के कवियों व लेखकों के द्वारा लिखी रचनाओं में भी दिखते हैं। शाहजहाँपुर के आग्नेय कवि स्वर्गीय अग्निवेश शुक्ल ने यह भावपूर्ण कविता लिखी थी

कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे,

कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे,
आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे।

हटने के नहीं पीछे, डरकर कभी जुल्मों से,
तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे।

बेशस्त्र नहीं हैं हम, बल है हमें चरख़े का,
चरख़े से ज़मीं को हम, ता चर्ख़ गुंजा देंगे।

परवा नहीं कुछ दम की, ग़म की नहीं, मातम की,
है जान हथेली पर, एक दम में गंवा देंगे।

उफ़ तक भी जुबां से हम हरगिज़ न निकालेंगे,
तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे।

सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका,
चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे।

दिलवाओ हमें फांसी, ऐलान से कहते हैं,
ख़ूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे।

मुसाफ़िर जो अंडमान के, तूने बनाए ज़ालिम,
आज़ाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे।

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