गुलज़ार साहब किसी परिचय ये मोहताज नहीं है उन्हें देश का बच्चा बच्चा जनता है 

Gulzar Shayari 

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तकलीफ खुद ही  कम हो गई, जब अपनों से उम्मीद  कम हो गई 

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छोटा सा साया था  आँखों में आया था, हमने दो बूंदों से  मन भर लिया। 

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तुम शोर करते हो, सुर्खियों में आने के लिए, हमारी तो खामोशियां अखबार बनी हुई है। 

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आप के बाद  हर घड़ी हम ने, आप के साथ  ही गुज़ारी है 

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ये कैसा रिश्ता हुआ  इश्क में वफ़ा का भला, तमाम उम्र में दो चार छः गिले भी नहीं 

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तेरे जाने से तो  कुछ बदला नहीं, रात भी आयी, चाँद भी था,  मगर नींद नहीं 

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लगता है आज जिंदगी  कुछ खफा है, चलिए छोड़िए कौन सा क्या पहली दफा है 

Gulzar Shayari 

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देर से गूँजतें हैं सन्नाटे, जैसे हमको  पुकारता है कोई 

Gulzar Shayari 

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