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Harishankar parsai quotes in hindi ! हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचनाएँ

Harishankar parsai quotes in hindi

Harishankar parsai quotes in hindi के इस आर्टिकल में हम आपके लिये प्रसिद्ध लेखक और व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के व्यंग्य से प्रेरित समाज के व्यापक सवालों से जोड़ा। हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai) की व्यंग्य कथाएं लोगों को गुदगुदाने के साथ ही सामाजिक वास्तविकताओं से परिचित कराती हैं।

हरिशंकर परसाई जन्म 22 अगस्त 1922 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में हुआ था व उनका निधन 10 अगस्त 1995 को जबलपुर में हुआ था। हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai) पहले रचनाकार थे, जिन्होंने हिंदी में व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया।

Harishankar Parsai Quotes

सबसे विकट आत्मविश्वास मूर्खता का होता है।

सार्थक श्रम से बड़ी कोई प्रार्थना नहीं है।

दूसरों के दुख को मान्यता देना ही सहानुभूति है।

राजनीति में शर्म केवल मूर्खों को ही आती है।

लड़कों को, ईमानदार बाप निकम्मा लगता है।

धर्म अच्छे को डरपोक और बुरे को निडर बनाता है।

व्यभिचार से जाति नहीं जाती है; शादी से जाती है।

झूठ बोलने के लिए सबसे सुरक्षित जगह अदालत है।

हरिशंकर परसाई के व्यंग्य

इज़्ज़तदार आदमी ऊँचे झाड़ की ऊँची टहनी पर दूसरे के बनाए घोंसले में अंडे देता है।

आत्मकथा में सच छिपा लिया जाता है।

अंधभक्त होने के लिए प्रचंड मूर्ख होना अनिवार्य शर्त है।

नाक की हिफ़ाज़त सबसे ज़्यादा इसी देश में होती है।

जो पानी छानकर पीते हैं, वे आदमी का ख़ून बिना छना पी जाते हैं।

अच्छा भोजन करने के बाद मैं अक्सर मानवतावादी हो जाता हूँ।

बेज़्ज़ती में अगर दूसरे को भी शामिल कर लो तो आधी इज़्ज़त बच जाती है।

रोटी खाने से ही कोई मोटा नहीं होता, चंदा या घूस खाने से होता है। बेईमानी के पैसे में ही पौष्टिक तत्त्व बचे हैं।

Famous Harishankar Parsai Quotes

शासन का घूँसा किसी बड़ी और पुष्ट पीठ पर उठता तो है, पर न जाने किस चमत्कार से बड़ी पीठ खिसक जाती है और किसी दुर्बल पीठ पर घूँसा पड़ जाता है।

मुझे सुलझे विचारों ने बार-बार मारा है।

नशे के मामले में हम बहुत ऊँचे हैं। दो नशे ख़ास हैं—हीनता का नशा और उच्चता का नशा, जो बारी-बारी से चढ़ते रहते हैं।

सचेत आदमी सीखना मरते दम तक नहीं छोड़ता। जो सीखने की उम्र में ही सीखना छोड़ देते हैं, वे मूर्खता और अहंकार के दयनीय जानवर हो जाते हैं।

मेरी आत्मा बड़ी सुलझी हुई बात कह देती है कभी-कभी। अच्छी आत्मा ‘फ़ोल्डिंग’ कुर्सी की तरह होनी चाहिए। ज़रूरत पड़ी तब फैलाकर उस पर बैठ गए; नहीं तो मोड़कर कोने में टिका दिया।

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