एडम गोंडवी के गीत और कविता समाज के सबसे गरीब, गरीब, वंचित और वंचित पुरुषों के लिए एक हथियार बन गए। Adam Gondvi shayari in hindi ने अपनी कविता में अस्तित्व की भयानक वास्तविकता को वाक्पटुता से व्यक्त किया है। उन्होंने अपनी कविताओं में भय, भूख, गरीबी और भ्रष्टाचार को व्यक्त किया है।
Adam Gondvi का जन्म 22 अक्टूबर 1947 को उत्तर प्रदेश के गोंडा में हुआ था। उनका असली नाम राम नाथ सिंह था। उनका जन्म एक गरीब किसान परिवार में हुआ था, लेकिन उन्हें बड़ी मात्रा में कृषि योग्य भूमि विरासत में मिली थी। एडम गोंडवी की कविताओं को उनके सामाजिक समस्याओं, भ्रष्टाचार, भ्रष्ट राजनेताओं के कटु विचारों और क्रांतिकारी प्रवृत्ति के विषयों के लिए जाना जाता है।
एडम गोंडवी अपनी कविता के माध्यम से, एडम गोंडवी ने हाशिए की जातियों, दलितों और गरीब लोगों की स्थिति पर ध्यान आकर्षित किया।
Adam Gondvi: With his poems, popular poet Adam Gondvi has won the hearts of many. Even today, we remember him through the best poems written by Adam Gondvi Shahab.
Adam Gondvi shayari in hindi
बज़ाहिर प्यार की दुनिया में जो नाकाम होता है,
कोई रूसो, कोई हिटलर, कोई खय्याम होता है
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में
हिन्दू या मुस्लिम के अहसास को मत छेड़िये
अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िये
काजू भुनी प्लेट में विस्की गिलास में – Adam Gondvi
काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में
मतस्यगंधा फिर कोई होगी किसी ऋषि का शिकार
दूर तक फैला हुआ गहरा कुहासा देखिये.
आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
गर चंद तवारीखी तहरीर बदल दोगे
क्या इनसे किसी कौम की तक़दीर बदल दोगे
अदम गोंडवी की गजलें
जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िये
चार दिन फुटपाथ के साये में रहकर देखिए
डूबना आसान है आँखों के सागर में जनाब
ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िये
Adam Gondvi shayari
हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िये
छेड़िये इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़ दोस्त, मेरे मजहबी नग्मात को मत छेड़िये
जो अक्स उभरता है रसख़ान की नज़्मों में
क्या कृष्ण की वो मोहक तस्वीर बदल दोगे?
भुखमरी की ज़द में है या दार के साये में है – Adam Gondvi
भुखमरी की ज़द में है या दार के साये में है
अहले हिन्दुस्तान अब तलवार के साये में है
छा गई है जेहन की परतों पर मायूसी की धूप आदमी गिरती हुई दीवार के साये में है
वेद में जिनका हवाला हाशिये पर भी नहीं
वे अभागे आस्था विश्वास लेकर क्या करें
बेबसी का इक समंदर दूर तक फैला हुआ और कश्ती कागजी पतवार के साये में है
Adam Gondvi shayari in hindi
लोकरंजन हो जहां शम्बूक-वध की आड़ में
उस व्यवस्था का घृणित इतिहास लेकर क्या करें
कितना प्रतिगामी रहा भोगे हुए क्षण का इतिहास त्रासदी, कुंठा, घुटन, संत्रास लेकर क्या करें
जो अक्स उभरता है रसख़ान की नज्मों में
क्या कृष्ण की वो मोहक तस्वीर बदल दोगे ?
तारीख़ बताती है तुम भी तो लुटेरे हो क्या द्रविड़ों से छीनी जागीर बदल दोगे ?
बुद्धिजीवी के यहाँ सूखे का मतलब और है
ठूंठ में भी सेक्स का एहसास लेकर क्या करें
गर्म रोटी की महक पागल बना देती मुझे– Adam Gondvi
गर्म रोटी की महक पागल बना देती मुझे
पारलौकिक प्यार का मधुमास लेकर क्या करें
हम फ़कीरों की न पूछो मुतमईन वो भी नहीं जो तुम्हारी गेसुए खमदार के साये में है
वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है
उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आयी है
जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिये आप भी इस भीड़ में घुस कर तमाशा देखिये
Shayari in hindi by Adam Gondvi
जो बदल सकती है इस पुलिया के मौसम का मिजाज़
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिये
जायस से वो हिन्दी की दरिया जो बह के आई मोड़ोगे उसकी धारा या नीर बदल दोगे ?
जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिये
आप भी इस भीड़ में घुस कर तमाशा देखिये
Gajals by Adam Gondvi
जो बदल सकती है इस पुलिया के मौसम का मिजाज़
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिये
उधर जम्हूरियत का ढोल पीते जा रहे हैं वो इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है ,नवाबी है
लगी है होड़ – सी देखो अमीरी औ गरीबी में
ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है
तुम्हारी मेज़ चांदी की तुम्हारे जाम सोने के यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है
तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है – Adam Gondvi
तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है
उधर जम्हूरियत का ढोल पीते जा रहे हैं वो इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है ,नवाबी है
जल रहा है देश यह बहला रही है क़ौम को
किस तरह अश्लील है कविता की भाषा देखिये
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